Munshi Premchand Biography in Hindi | मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

Munshi Premchand Biography in Hindi

Munshi Premchand Biography in Hindi : आज इस लेख में मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय बताने वाले है हमारे देश में कई सारे महान लेखक और कवि हुए है। जिन्होंने कलम के दम पर न जाने कितनी सामाजिक बुराइयों को ख़त्म किया और अपनी बेहतरीन लेखक कला से देश का नाम रौशन किया।

इन महान लेखक साहित्यकारो जा लेखन कुछ इस तरह था कि उसका प्रभाव समाज पर बहुत ही गहराई से पड़ा जिन कारण लोगो ने आज तक नहीं भुला पाए।

दोस्तों ऐसे ही महान लेखकों के श्रेणी में आते है मुंशी प्रेमचंद ने सरल सहज हिन्दी को, ऐसा साहित्य प्रदान किया जिसे लोग, कभी नही भूल सकते . बड़ी कठिन परिस्थियों का सामना करते हुए हिन्दी जैसे, खुबसूरत विषय मे, अपनी अमिट छाप छोड़ी . मुंशी प्रेमचंद्र जिन्हे दुनिया उपन्यास सम्राट के नाम से भी जानती है जी है।

आज के आर्टिकल में हम मुंशी प्रेमचंद्र के बारे में पूरी जानकारी जानने वाले हैं जैसे- प्रेमचंद्र कौन थे, उन्होंने कितनी उपन्यास, कितनी कहानी तथा भी कितने प्रकार के पुस्तक लेखे, प्रेमचंद्र के बचपन कैसे बीते (Munshi Premchand Biography In Hindi) इत्यादि बाते इस आर्टिकल में जानेंगे।

Munshi Premchand Biography in Hindi

नाममुंशी प्रेमचंद
पूरा नामधनपत राय
जन्म तिथि 31 जुलाई 1880
जन्म स्थानवाराणसी के लमही गाँव मे हुआ था .
मृत्यु8 अक्टूबर 1936
पिता का नाम अजायब राय
माता का नाम आनंदी देवी
भाषाहिन्दी, उर्दू
राष्ट्रीयताभारतीय
प्रमुख रचनायेगोदान, गबन

मुंशी प्रेमचंद्र कौन थे?

मुंशी प्रेमचंद्र हिंदी और उर्दू के सर्वाधिक प्रसिद्ध कहानीकार।, उपन्यासकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवा सदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ दर्जन उपन्यास लिखी।

जिसमें कफ़न, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढी काकी, दो बैलो की कथा अदि लगभग 300 से अधिक कहानिया लिखी थी इनमे अधिकांश हिंदी तथा उर्दू में प्रकाशित हुई

उन्होंने अपने दौर की सभी उर्दू और हिंदी पत्रिकाओं जैसे जवाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि लिखा था। उन्होंने हिंदी समाचार पत्र जागरण तथा सहायत्रीक पत्रिका हंस का प्रकाशन तथा संपादन भी किया।

किसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस ख़रीदा जो बाद में घाटे में रहा और बंद करना पड़ा मुंशी प्रेमचंद्र फिल्मो कि पथ कथा लिखने मुंबई भी आये और लगभग 3 वर्ष तक यहाँ पर संघर्ष किया और जीवन अंतिम दिनों तक इस सहयतिक सुर्जन में लगे रहे।

महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबंध रहा, साहित्य का उदेश्य अंतिम क्याख्यांत, कफम अंतिम कहानी, गोदान अंतिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगल सूत्र अंतिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है। 1906 से 1936 के बीच लिखा गया प्रेमचंद्र का साहित्य 30 वर्ष का सामाजिक सांकृतिक दस्तावेज है।

इसमें उस दौर के समाज सुधार आंदोलनों स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आंदोलनो के सामाजिक प्रभाव का स्पस्ट चित्रण है। इनमे दहेज़ और मेल विवाह, प्राधीन्ता, लगान, छुवाछुत, जातिभेद, बिध्वा विवाह, आधुनिकता स्त्री पुरुष समान्ता आदि उस दौर की सभी समस्याओ का चित्रण मिलता है।

आपको बता के कि हिंदी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के काल खण्ड को प्रेमचंद्र युग कहा जाता है।

मुशी प्रेमचंद्र का जीवन परिचय  – Munshi Premchand Biography In Hindi

मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारसी जिले के लम्ही गांव में एक कायस्त परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था लम्ही में डाक मुंशी थे प्रेमचंद्र के आरम्भिक शिक्षा फर्शी में हुई थी।

प्रेमचंद्र जब सात साल के थे तभी उनके माता का मृत्यु हो गया जब वे 15 वर्ष के हुए तब उनकी शादी कर दी गई और 16 वर्ष के होने पर उनके पिता का मृत्यु हो गई। जिसके कारण उनका प्राम्भिक जीवन बहुत ही संघर्ष पूर्ण बिता

कहते है कि सौतेली माँ का व्यहार बचपन में शादी पण्डे पुरोहोतो का क्रम कांड किसानो तथा कलर्को का दुखी जीवन ये सब प्रेमचंद्र 16 वर्ष के उम्र में देख लिया था। इसीलिए उनके अनुभव एक जबरजस्त सच्चाई लिए हुए उनके कथा साहित्य में झलक उठते थे।

उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत मन लगता था 13 साल के उम्र में ही उन्होंने उर्दू का मशहूर रचनाकर रतननाथ सरसार मिर्जा हादी रुस्वा और मौलाना सरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया।

उनकी पहली शादी 15 साल के उम्र में हो गई थी आगे चलकर 1906 में उनके दूसरी शादी देवरानी देवी से हुआ जो बाल विध्वा थी वे पढ़ी-लिखी महिला थी। जिन्होंने ने कुछ कहानियां और उपन्यास भी लिखे थे उनके 3 संताने हुए श्रीपतराय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव प्रेमचंद्र 1898 में मैट्रिक का परीक्षा पास होने के बाद एक स्तानिये विद्यालय में शिक्षक के पद पर नयुक्त हो गए।

नौकरी के साथो-साथ पढाई भी जारी रखी प्रेमचंद्र ने 1910 में अंग्रेजी, दर्सन, फ़ार्सी और इतिहास लेकर 12वी किया और 1919 में अंग्रेजी, फ़ार्सी और इतिहास लेकर BA किया। 1919 में BA पास करने के बाद वे शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर नयुक्त हो गए थे।

आगे जाकर 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी के सरकारी नौकरी छोड़ने पवन्ध में स्कूल इंपेक्टर पद से 23 जून को प्रेमचंद्र ने त्यागपत्र दे दिया।

इसके बाद लेखन को उन्होंने अपना वेव्साय बना लिया। उन्होने मर्यादा और माधुरी जैसे पत्रिकाओ में समादित के तौर पर भी काम किया था।

इसी दौरान उन्होंने प्रवासी लाल से मिलकर सरस्वती प्रेस भी ख़रीदा तथा हंस और जागरण का प्रकाशन किया प्रेस के वेबसाय में उन्हें कुछ खास सफलता नहीं मिली।

इसी के चलते 1933 में उन्होंने कर्जे को निपटने के लिए उन्होंने मोहन लाल भवनानी के सिनेटोप कम्पनी में लेखक के रूप में काम करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

लेकिन फिल्म नगरी प्रेमचंद्र को रास नहीं आयी। प्रेमचंद्र एक वर्ष का भी कॉन्टेक्ट नहीं कर पाए और 2 महीने का वेतन छोड़कर बनारस लौट आये वही उनका सेहत भी लगातार बिगड़ता गया लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका मृत्यु हो गया।

प्रेमचंद्र का साहित्यिक जीवन – Munshi Premchand Books

प्रेमचंद्र का सहित्यिक जीवन का शुरुआत 1901 से हो चूका था शुरू में वे नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखा करते थे 1908 में उनका पहला कहानी संग्रह सोजे वतन प्रकाशित हुआ।

देश भक्ति के भावना के साथ हुए संग्रह को अंग्रेज सरकार ने प्रतिबंदित कर दिया था इसके लिखन नवाब राय को भविष्य में लेखन ना करने कि धमकी दी गई इसी कारण उन्होंने अपना नाम बदलकर नवाब राय से प्रेमचंद्र कर लिया।

उनका ये नाम गया नारायण निगम ने रखा था प्रेमचंद्र नाम से पहली कहानी बड़े घर की बेटी जवाना पत्रिका दिसम्बर 1910 के अंत में प्रकाशित हुई 1915 में उस समय के हिंदी मासिक पत्रिका सरस्वती के दिसम्बर अंक में पहली बार कहानी सौत नाम से प्रकाशित हुई।

वही 1918 में उनका पहला हिंदी उपन्यास सेवासदन प्रकाशित हुआ इसकी अत्यदिक लोकप्रियता ने प्रेमचंद्र को उर्दू से हिंदी का कथाकार बना दिया था।

अर्थात, उनकी सभी रचनाएँ हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओ में प्रकाशित होती रही उन्होंने लगभग 300 कहानियाँ तथा डेढ़ दर्जन उपन्यास लिखा है 1921 में उन्होंने असहियोग आंदोलन के दौरान सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद वे पूरी तरह साहित्य सृजन में लग गए।

उन्हीने कुछ समय मर्यादा नाम के पत्रिका का संपादन किया इसके बाद उन्होंने लगभग 6 वर्षो तक हिंदी पत्रिका माधुरी का संपादन किया 1922 में उन्होंने बेदखली के समस्या से के आधार पर प्रेमाश्रम उपन्यास प्रकाशित किया।

1924 में उन्होंने रंगभूमि नामक वृहद् उपन्यास प्रकाशित किया किसके कारण उनको मंगल प्रसाद पारितोषित पुरस्कार मिला 1926-1927 के दौरान उन्होंने महादेवी वर्मा द्वारा सम्पादित हिंदी मासिक पत्रिका निर्मला की रचना की इसके बाद उन्होंने काया कल, गबन, कर्मभूमि और गोदान कि रचना की थी।

उन्होंने 1930 में बनारस से अपनी मासिक पत्रिका हंस का भी प्रकाशन शुरू किया साल 1932 में उन्होंने हिंदी साप्ताहिक पत्र जागरण का भी प्रकाशन प्रारंभ किया।

उन्होंने लखनऊ में 1936 में अखिल भारती प्रगतिसिक लेखक संग सम्मेलन भी की आगे चलकर उन्होंने मोहनदया नंद भवानी कि अजन्ता सिनेटोप कम्पनी में कथा लेखक कि नौकरी भी की 1920 से 1936 के बिच प्रेमचंद्र हर साल 10 या 15 से अधिक कहानियाँ लिखते थे।

उनके मरने के समय उनकी कहानियाँ मानसरोवर से आठ खण्डो में प्रकाशित हुई उपन्यास और कहानियो के अलावा वैचारिक निबंध, सम्पादकिये और पत्र के रूप में भी उनका उत्कृट लेखन उपलब्ध है।

मुंसी प्रेमचंद्र के लेखनो के सधार पर बनी फिल्मे

अब तो आप समझ गए होंगे मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन परिचय क्या है। (Munshi Premchand Biography In Hindi) लेकिन क्या आप जानते है कि प्रेमचंद्र हिंदी सिनेमा के सबसे लोकप्रिय सहत्यकारो में से एक है।

  1. 1934 में आयी फिल्म मजदुर जिसकी कहानी उन्होंने ही लिखी थी।
  2. महान फ़िल्मकार सत्यजीत राय ने उनकी दो कहानियों पर यादगार फिल्मे बनाई थी 1777 में शतरंज के खिलाड़ी और 1981 में सदगति उनके देहांत के 2 वर्ष के बाद सुब्रमण्यन ने सेवासदन के उपन्यास पर फिल्म बनाई थी जिसमे शुभ लक्ष्मी में मुख्य भूमिका निभाई थी।
  3. 1977 में मिरणानं सेन ने प्रेमचंद्र के कहानी कफ़न पर आधारित ओकाओरी नामक तेलगु फिल्म बनाई जिसको सर्वश्रेठ तेलगु फिल्म का नेशलन पुरस्कार भी मिला था।
  4. 1963 में गोदान और 1966 में गबन उपन्यास पर लोकप्रिय फिल्मे बनी 1980 में उनके उपन्यास में बना टीवी धारावाहिक निर्मला भी बहुत लोकप्रिय हुआ था।
  5. मुंसी प्रेमचंद्र का बचपन बहुत से संघर्षो से भरा हुआ था उन्होंने बचपन में ही बहुत कास्ट देखे थे सायद इसी कारण उनका दर्द उनकी रचनाओं में भी दिखाई देता है वे अपने रचनाओं के माध्यम से लोगो दिल छू लेते थे।
  6. दोस्तों मुंसी प्रेमचंद्र भले ही हमारे साथ न हो लेकिन अपने साहित्य तथा बेतरीन उपन्यासों के माध्यम से सदैव अमर रहेंगे।

FAQ

Q : मुंशी प्रेमचंद की पहली कहानी कौन सी है?

Ans : मुंशी प्रेमचंद की पहली कहानी का नाम बड़े घर की बेटी यह कहानी ज़माना पत्रिका के दिसम्बर 1910 के अंक में प्रकाशित हुई थी।

Q : मुंशी प्रेमचंद किस नाम से मशहूर है?

Ans : मुंशी प्रेमचंद धनपत राय और नवाब राय नाम से भी लोग जानते थे।

Q : मुंशी प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां कौन कौन सी थी?

Ans : गोदान उपन्यास, दो बैलों की कथा, पूस की रात, कफन, ईदगाह आदि सामिल है।

Q : मुंशी प्रेमचंद की माता की मृत्यु के समय उनकी आयु कितनी थी?

Ans : मुंशी प्रेमचंद की माता की मृत्यु जब पन्द्रह वर्ष के हुए तब हुई थी उस वक्त उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर उनके पिता का भी देहान्त हो गया।

Q : मुंशी प्रेमचंद के माता और पिता का नाम क्या था?

Ans : मुंशी प्रेमचंद के माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था।

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