गौतम बुद्ध का जीवन परिचय | Gautama Buddha Biography in Hindi

Gautama Buddha Biography in Hindi

Gautama Buddha Biography in Hindi : आज इस लेख में माध्यम से आपको गौतम बुद्ध जीवन परिचय गौतम बुद्ध का जीवन परिचय बताएँगे महात्मा बुध बौद्ध धर्म का संस्थापक के साथ-साथ धर्म सुधारक एवं अध्यात्मिक गुरु थे बुद्ध का जन्म हिंदू धर्म में क्षत्रिय शासक के यहां हुआ था।

बुद्ध के जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिसकी वजह से ऐसे जीवन से छुटकारा पाना चाहते थे जो शुरू से अंत तक दुखों से भरा हों इसलिए वह सच्चे जीवन एवं ज्ञान की खोज में घर-परिवार को त्याग कर निकल पड़े और उसके बाद उन्होंने गया (वर्तमान में बिहार का एक जिला) में एक वटवृक्ष के नीचे तपस्या करके सच्चा ज्ञान प्राप्त किया।

उसके बाद उन्होंने अपने ज्ञान को दूसरों तक उपदेश देकर पहुंचाया और चारों ओर बौद्ध धर्म का प्रचार किया बौद्ध धर्म बहुत ही तीव्र गति से चारों दिशाओं में फैला बौद्ध धर्म के तीव्र गति से प्रसार होने का सबसे मुख्य कारण महात्मा बुद्ध का व्यक्तित्व था।

बुद्ध का व्यक्तित्व सहनशीलता स्नेही दया करुणा क्षमा का प्रतिरूप था बुद्ध के प्रभावशाली व्यक्तित्व से जो भी हम के संपर्क में आता जो प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता केनेथ ने भी बौद्ध धर्म के प्रचार का मुख्य श्रेय महात्मा बुद्ध के व्यक्तित्व को ही दिया हैं।

उनके शब्दों में, जब शुद्ध हृदय व दया भाव एक ही व्यक्ति में निहित होते हैं तो वह व्यक्ति श्रद्धा का पात्र और आराध्य बन जाता है बौद्ध धर्म की सफलता का यह एक मुख्य कारण था आइये आपको Gautama Buddha Biography पुरे विस्तार से बताते है।

Gautama Buddha Biography in Hindi

हकीकत नामसिद्धार्थ वशिष्ठ
उपनामगौतम बुद्ध, सिद्धार्थ गौतम, शाक्यामुनि, बुद्धा
व्यवसायबौद्ध धर्म के संस्थापक
जन्मतिथि563 ई०
जन्मस्थानलुंबिनी, नेपाल
मृत्यु तिथि483 ई०
मृत्यु स्थलकुशीनगर, भारत
आयु (मृत्यु के समय)80 वर्ष
गृहनगरलुंबिनी, नेपाल
धर्मबौद्ध धर्म
जातिक्षत्रिय (शाक्य)
पिता का नाम शुद्धोधन
माता का नाम मायादेवी, महाप्रजावती उर्फ़ गौतमी (सौतेली माँ)
पत्नी का नाम राजकुमारी यशोधरा
पुत्र का नाम राहुल
पुत्री का नाम कोई नहीं

महात्मा बुद्ध का जन्म

गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व कपिलवस्तु के पास लुंबिनी वन में हुआ था लुंबिनी वन, नेपाल राज्य की तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु से लगभग 14 मील दूर स्थित है गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन था, जो क्षत्रिय शाक्य कुल के शाक्यों के राज्य कपिलवस्तु के राजा थे बुद्ध की माता का नाम माया था जो कोलीय वंश के देवदह राज्य की राजकुमारी थी।

बुद्ध का जन्म लुंबिनी के वन में 2 साल वृक्षों के बीच तब हुआ जब उनकी माता माया कपिलवस्तु से अपने पिता के घर जा रही थी बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था बुद्ध के जन्म के सातवें दिन ही उनकी माता माया का देहांत हो गया जिसके बाद गौतम बुद्ध का पालन पोषण उनकी मौसी और विमाता (सौतेली मां) महाप्रजापति गौतमी ने किया बुद्ध का गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण वे गौतम कहलाए।

बुद्ध के जन्म के पांचवे दिन राजा शुद्धोधन द्वारा नामकरण समारोह आयोजित किया गया जिसमें 8 ब्राह्मणों ने भविष्यवाणी पढ़ी और कहा यह बच्चा या तो एक महान राजा बनेगा या फिर एक महान पथ प्रदर्शक बनेगा। ब्राह्मणों द्वारा की गई यह भविष्यवाणी सत्य साबित हुई और आगे चलकर यह बालक बौद्ध धर्म का प्रवर्तक बना।

महात्मा बुद्ध की शिक्षा

महात्मा बुद्ध ने सिद्धार्थ अपने गुरु विश्वामित्र से वेद और उपनिषद का ज्ञान प्राप्त किया और साथ ही साथ युद्ध विद्या और राजकाज की शिक्षा भी ग्रहण किया सिद्धार्थ का कुश्ती, तीर कमान, रथ हांकने एवं घुड़दौड़ में बराबरी करने वाला कोई नहीं था सिद्धार्थ बचपन से ही यशस्वी एवं तेजस्वी थे।

महात्मा बुद्ध की विवाहित जीवन

महात्मा बुद्ध का विवाह रामग्राम के कोलिय गणराज्य की राजकुमारी यशोधरा के साथ हुआ जब बुद्ध का विवाह हुआ तब उनकी उम्र महज 16 वर्ष की थी विवाह के पश्चात उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नाम राहुल रखा गया था।

पुत्र प्राप्ति का समाचार सुनकर उन्होंने कहा “आज मेरे बंधन पर श्रृंखला में एक कड़ी और जुड़ गई” सिद्धार्थ लगभग 12 वर्षों तक गृहस्थ जीवन व्यतीत किया लेकिन गौतम बुद्ध को गृहस्थ जीवन बिल्कुल भी नहीं भाया।

महात्मा बुद्ध का घर त्याग

गौतम बुद्ध बचपन से ही चिंतनशील एवं गंभीर स्वभाव के थे और वे एकांत में बैठकर घंटों चिंतन करते थे सांसारिक कष्टों को देखकर बुद्ध का ह्रदय करुणा से भर जाते थे और वह इन सभी कष्टों से मुक्ति पाने के उपाय के बारे में सोचा करते थे बुद्ध के पिता राजा शुद्धोधन की इच्छा थी कि सिद्धार्थ राजकीय वैभव में लिप्त रहे और सांसारिक क्रियाकलापों में भाग ले।

इसलिए राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ को अत्यंत ही सुख एवं विलास से पाला और केवल 16 वर्ष के उम्र में उनका विवाह कर दिया लेकिन इसके बावजूद भी सिद्धार्थ का ह्रदय सांसारिक दुखों से ओझल नहीं हो सका।

सिद्धार्थ के पिता राजा शुद्धोधन चाहते थे की सिद्धार्थ मेरे बाद राजकाज संभाले और राजा की भांति अपनी जीवन व्यतीत करें सिद्धार्थ के लिए उनके पिता राजा शुद्धोधन ने ऋतुओ के अनुसार तीन महल बनवाए थे जिसमें नाच गाने एवं ऐसो-आराम की सभी व्यवस्थाएं की गई थी लेकिन फिर भी सिद्धार्थ के मन में इन भोग-विलासओ का कोई असर नहीं हुआ।

सिद्धार्थ का ह्रदय बचपन से ही करुणा और दया का सोच था जब सिद्धार्थ घुड़दौड़ करते थे तो घोड़े के मुंह से झाग निकलते देख घोड़े को थका हुआ समझ कर वही रोक देते थे जिससे घोड़े को आराम मिल सके ऐसा करने से वह जीता हुआ रेस भी हर जाया करते थे उनके लिए रेस जीतने से अधिक महत्व घोड़े का थक ना जाना था इससे यह पता चलता है की उनके हृदय में दया और करुणा का भंडार था।

एक बार सिद्धार्थ के चचेरा भाई देवदत्त ने उनके सामने की एक हंस को तीर से घायल कर दिया जिसे देखकर सिद्धार्थ बहुत ही आहत हुए और हंस के प्राणों की रक्षा भी की बौद्ध ग्रंथों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि सांसारिक जीवन त्यागने का विचार सिद्धार्थ के मस्तिष्क में चार घटनाओं से आया।

एक बार जब बुद्ध (सिद्धार्थ) सैर पर निकले तब उन्होंने एक वृद्ध को देखा, जो कॉफी कमजोर और हाथ में लाठी लिए सड़क पर कांपते हुए धीरे-धीरे चला जा रहा था दूसरी बार जब सीधा बगीचे में शहर के निकले तो उन्होंने एक रोगी को देखा जिसकी सांसे बहुत तेज चल रही थी पेट फुला हुआ था चेहरा पीला पड़ गया था और वह अन्य व्यक्ति के सहारे बहुत मुश्किल से चल भी पा रहा था।

फिर तीसरी बार सिद्धार्थ एक लाश को देखा जिसे चार व्यक्ति अगर ले जा रहे थे और उसके घर वाले पीछे-पीछे रोते बिलखते, छाती पीटते जा रहे थे यह देखकर सिद्धार्थ के मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा उसी समय उनके मन में यह विचार आया की क्या फायदा ऐसे जीवन का जो इतने सारे कष्टों से भरी हैं।

फिर अगली बार उन्होंने एक सन्यासी को देखें जो सारी सांसारिक बंधनों मोह माया को त्याग कर मोक्ष के लिए प्रयत्नशील था। इन सभी घटनाओं में सिद्धार्थ को घर त्यागने के लिए प्रेरित किया।

सिद्धार्थ के पास किसी चीज की कमी नहीं थी उनका जीवन चारों ओर से सुख-समृद्धि भरा था इतना सब कुछ होते हुए भी सिद्धार्थ के मन को शांति प्राप्त नहीं थी उपरोक्त घटित घटनाओं ने उनके हृदय को काफी परिवर्तित किया और फिर एक रात अपने सभी सुख-सुविधाओं के साथ-साथ अपने घर-परिवार पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को सोता छोड़कर सच्चे ज्ञान की खोज में निकल पड़े।

महात्मा बुद्ध सच्ची ज्ञान की प्राप्ति

महात्मा बुद्ध ज्ञान की खोज में घर छोड़ने के पश्चात बुद्ध इधर उधर भटकते रहे और वह मगध की राजधानी राजगृह में अलार तथा उद्रक नामक दो प्रसिद्ध ब्राह्मण विद्वानों से मिलें लेकिन उन्हें वहां संतुष्टि नहीं हुई फिर वह घूमते हुए निरंजना नदी के किनारे उरवेल नामक वन में पहुंचे, जहां उन्हें कई अन्य तपस्वीयों से भेंट हुई।

बुद्ध उन तपस्वीयों के साथ अन्न और जल त्याग कर घोर तपस्या की जिससे उनका शरीर सूखकर जर्जर हो गया और उन्हें फिर भी ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। अब बुद्ध समझ गए थे कि अपने शरीर को कष्ट देकर मोक्ष की प्राप्ति नहीं की जा सकती है इसके बाद उन्होंने फिर से अन्न और जल का ग्रहण करना शुरू किया।

यह देख कर अन्य तपस्वी उनका साथ छोड़ दिया। अब इसके बाद सिद्धार्थ (बुद्ध) गया (वर्तमान में बिहार राज्य का एक जिला) पहुंचे वहां पहुंचकर उन्होंने एक वट वृक्ष के नीचे अपनी समाधि लगाई और यह प्रण किया कि जब तक ज्ञान की प्राप्ति नही हो जाती है तब तक वह वहां से नहीं हटेंगे।

इसके बाद उन्होंने लगातार 7 दिन और 7 रात समाधि में रहा जिसके पश्चात उन्हें आठवें दिन वैशाख के पूर्णिमा के दिन सच्चे ज्ञान का प्रकाश मिला इस घटना को संबोघी (Great Enlightenment) कहा गया है अब इसके बाद उन्होंने जिस वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया उससे बोधि वृक्ष और गया को बोध गया कहा गया और साथ ही सिद्धार्थ को भी महात्मा बुद्ध कहा जाने लगा।

महात्मा बुद्ध द्वारा ज्ञान एवम् बौद्ध धर्म का प्रसार

महात्मा बुद्ध का उद्देश्य केवल स्वयं ही ज्ञान प्राप्त करना नहीं था वह अन्य लोगों मैं भी अपने ज्ञान का प्रसार करके उन्हें दुखों से मुक्त कराना चाहते थे अब महात्मा बुद्ध काशी की ओर चल पड़े और ऋषिपतन (सारनाथ) पहुंचे सारनाथ में पहुंचकर सबसे पहले पांच ब्राह्मणों को उपदेश दिया यह सभी ब्राह्मण महात्मा बुद्ध से अति प्रसन्न हुए और उनके शिष्य बन गए।

इन शिष्यों को ‘पंचवर्गीय’ कहा जाता है और महात्मा बुद्ध द्वारा दिए गए इन शिष्यों के उपदेशों की घटना को धर्म-चक्र-प्रवर्तन कहा जाता है महात्मा बुद्ध का यश बहुत जल्द ही चारों तेजी से फैलने लगा और उनके शिष्यों की संख्या 60 हो गई इसके बाद बुद्ध ने एक संघ की स्थापना की और अपने शिष्यों को अपने धर्म का प्रचार करने के लिए चारों ओर भेजा डॉक्टर राजबलि पांडे जी ने लिखा है कि यह संसार का पहला प्रचारक संस्था था।

इसके बाद महात्मा बुद्ध सारनाथ से उरवेल गए, फिर उसके बाद मगध की राजधानी पहुंचे जहां उन्होंने बड़ी संख्या में स्थित से बनाएं जिनमें मोग्गलान और सारिपुत्र प्रमुख थे मगध का शासक बिंबिसार भी उनका बहुत बड़े प्रशंसक बन गए राजगृह का ही एक व्यापारी अनाथपिंडक भी बुद्ध का शिष्य बन गया और जीत वन खरीदकर वहा एक बिहार की स्थापना भी कराई।

वैसे तो महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म की आधारशिला मगध राज्य में रखी थी किंतु बौद्ध धर्म का वास्तविक प्रगति कोशल राज्य में हुई साथी कौशल राज्य का राजा प्रसेनजीत भी बुद्ध का शिष्य बन गया अब इसके बाद महात्मा बुद्ध अपने देश (राज्य) कपिलवस्तु भी गए जहां उनकी पत्नी पुत्र व अनेक शाक्य वंशीय व्यक्ति उनके शिष्य बन गए इसके बाद महात्मा बुद्ध वैशाली गए जहां वहां की प्रसिद्ध राजनर्तकी आम्रपाली उनकी शिष्या बन गई।

जब वे वैशाली में थे तभी उनकी भी माता गौतमी, शुद्धोधन के मृत्यु से दुखी होकर बुद्ध के पास आई और संघ में प्रवेश करने की अनुमति मांगने लगी लेकिन महात्मा बुद्ध स्त्रियों को संघ में सम्मिलित नहीं करना चाहते थे लेकिन अपने प्रिय शिष्य आनंद के आग्रह पर उन्होंने अनुमति दे दी लेकिन फिर भी स्त्रियों के लिए एक पृथक संघ की स्थापना की गई इसके बाद महात्मा बुध आजीवन अलग-अलग राज्यों मगध, काशी, शाक्य, को, मल्ल आदि में जाकर अपने धर्म का प्रचार करते रहे।

मौर्य काल के आते-आते बौद्ध धर्म भारत से निकलकर अनेक दूसरे देशों चीन, मंगोलिया, श्रीलंका, बर्मा, थाईलैंड, जापान, कोरिया आदि देशों में फैल चुका था और आज भी इन सभी देशों में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है।

महात्मा बुद्ध का मृत्यु

महात्मा बुद्ध 80 वर्ष की उम्र में घूमते हुए पावा पहुंचे थे जहां उन्हें अतिसार रोग हो गया था इसके पश्चात वे कुशीनगर पहुंचे और उस समय कुशीनगर मल्लो की राजधानी थी 483 ईसा पूर्व वैशाख के पूर्णिमा के दिन महात्मा बुद्ध का देहांत हो गया इस घटना को महापरिनिर्वाण कहा जाता है।

इससे पहले कुंडा नामक एक लोहार ने महात्मा बुद्ध के लिए भोजन भेंट के रूप में दिया था जिसे खाने के बाद महात्मा बुद्ध गंभीर रूप से बीमार पड़ गए इसके बाद बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनंद को निर्देश दिया कि वह कुंडा को समझाएं कि उसके दिए गए भोजन में कोई दोष नहीं हैं और वह भोजन बहुत अतुल्य हैं।

महात्मा बुद्ध के उपदेश

महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म का प्रचार प्राचीन काल के अन्य धर्मपदेशकों के समान ही मौखिक रूप से किया। सर्वप्रथम बुद्ध ने सारनाथ में पांच ब्राह्मणों को उपदेश दिया महात्मा बुद्ध बहुत समय तक अपने शिष्य को उपदेश मौखिक रूप से ही दिया था इसके बाद कुछ निकटतम शिष्यों ने बुद्ध के वचनों वह उपदेशों का संकलन त्रिपिटकों के रूप में किया इन्हीं त्रिपिटकों द्वारा बुद्ध धर्म के सिद्धांतों का पता चलता है।

महात्मा बुद्ध ने बताया मनुष्य जीवन शुरू से लेकर अंत तक दुखों से भरा हैं महात्मा बुद्ध ने स्वयं कहा था “मैं बराबर तो ही मुख्य उपदेश देता हूं दुख और दुख निरोध” इस दुख से मुक्त होने के लिए बुद्ध ने चार आर्य सत्य व अष्टांगिक मार्ग पालन करने को कहा। महात्मा बुद्ध जिओ के हत्या का विरोध करते थे और हिंसा के घोर विरोधी थे महात्मा बुद्ध के उपदेशों का सार इस प्रकार हैं।

  1. चार आर्य सत्य
  2. अष्टांगिक मार्ग
  3. मध्यम मार्ग
  4. सदाचारी जीवन
  5. अहिंसा
  6. कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत
  7. अनात्मवाद
  8. अनीश्वरवाद
  9. क्षणिकवाद

FAQ

Q : महात्मा बुद्ध के गुरु का नाम क्या था?

Ans : आलार कलाम

Q : महात्मा बुद्ध का जन्म कहा हुआ था?

Ans : लुंबिनी वन में

Q : महात्मा बुद्ध जयंती कब है?

Ans : 26 मई को

Q : महात्मा बुद्ध के कितने संतान थे?

Ans : 1 ही पुत्र था जिसका नाम राहुल था।

Q : गौतम बुद्ध किसके अवतार थे?

Ans : भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे।

Q : गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति कहां हुई थी?

Ans : वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

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