Bhagavad Gita Quotes in Hindi | भगवत गीता के अनमोल वचन

Author: Nishant Singh Rajput | 3 months ago

Bhagavad Gita Quotes in Hindi : अगर आपको भागवत गीता पढने का शौक है तो आज यहाँ हम आपको Best Bhagavad Geeta Quotes उपलध कराये जो आपको बहुत पसंद आएगा महाभारत का भीष्म पर्व भगवत गीता में मिलता है, जो एक प्राचीन भारतीय पौराणिक ग्रंथ है। यह लेख विश्व भर में भारतीय धर्म, दर्शन और जीवन के मूल्यों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।

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भगवत गीता का कथानक अर्जुन की दुविधा और उदासीनता को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने उसे कुरुक्षेत्र के युद्ध से पहले क्या कहा था। इस गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने जीवन, कर्म, भक्ति और योग के विभिन्न पहलुओं की व्याख्या की है और जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर दिए हैं।

भगवत गीता का संदेश है कि हमें भगवान की भक्ति में समर्पित रहना चाहिए और अपने कर्मों को निष्काम भाव से करना चाहिए। गीता में मानव जीवन का उद्देश्य और धर्म के प्रति हमारी जिम्मेदारियां भी बताई गई हैं।

भगवत गीता एक विशिष्ट ग्रंथ है जो मानवता के मूल्यों और जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को समझाने का प्रयास करता है; यह धार्मिक और दार्शनिक विचारों का एक महत्वपूर्ण स्रोत है आइये आपको Best Bhagavad Gita Quotes हिंदी में बताते है।

Bhagavad Gita Quotes in Hindi

Bhagavad Gita Quotes in Hindi

(1)

श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब मैं अपना स्वरूप बनाता हूँ।

(2)

मैं हर युग में मानव के रूप में अवतार लेता हूँ, धर्म की स्थापना करने के लिए, साधुओं की रक्षा करने के लिए और दुष्कर्मियों का नाश करने के लिए।

(3)

मैं भक्तिपूर्ण व्यक्ति को प्यार करता हूँ जो न कभी खुश होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है और सभी शुभ और अशुभ कर्मों को छोड़ देता है।

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(4)

हे भगवान! हे अनन्त! हे देवेश! हे जगन्निवास! जो सत्, असत् और उनसे परे अक्षर अर्थात सच्चिदानन्दघन ब्रह्म है, वह आप ही हैं, इसलिए वे ब्रह्मा के भी आदिकर्ता और सबसे बड़े आपको कैसे न नमस्कार करें?

(5)

मिथ्याचारी, या दम्भी, वह है जब एक व्यक्ति अपनी सभी इन्द्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोककर मन से उन इन्द्रियों के विषयों का विचार करता रहता है।

Bhagavad Gita Quotes in Hindi

(6)

यदि कोई व्यक्ति तत्त्वज्ञान से मेरी इस परमैश्वर्यरूप विभूति और योगशक्ति को जानता है, तो वह निश्चित रूप से भक्तियोग से युक्त हो जाता है. यह जानना कि संसार केवल दृश्यमात्र है और एकमात्र वासुदेव भगवान सर्वत्र परिपूर्ण है।

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(6)

परमात्मा को विद्या-विनययुक्त ब्राह्मण में, चाण्डाल में, गाय, हाथी और कुत्ते में भी देखने वाले ज्ञानी महापुरुष हैं।

(7)

श्री भगवान ने कहा कि परम अक्षर को “ब्रह्म” कहा जाता है, अपना स्वरूप अर्थात जीवात्मा को “अध्यात्म” कहा जाता है, और भूतों का भाव पैदा करने वाला त्याग को “कर्म” कहा जाता है।

(8)

जब कोई व्यक्ति न तो इन्द्रियों के भोगों में और न ही कर्मों में आसक्त होता है, तो उसे योगारूढ़ कहा जाता है।

(9)

जो दुःखरूप संसार के संयोग से रहित है तथा जिसका नाम योग है, वह जानना चाहिए। वह योग धैर्य और उत्साह से करना चाहिए, अर्थात् न थककर।

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(10)

किन्तु आत्मा में ही रहने वाले, आत्मा में ही प्रसन्न होने वाले व्यक्ति को कोई दायित्व नहीं है।

(11)

प्रकृति के गुणों से बहुत मोहित होकर मनुष्य अपने गुणों और कर्मों पर निर्भर रहते हैं, इसलिए उन्हें पूरी तरह से नहीं समझने वाले मूर्खों को पूरी तरह से जानने वाला ज्ञानी विचलित नहीं होगा।

(12)

यह स्पष्ट है कि जो व्यक्ति अपना शरीर त्यागकर अंततः मुझे याद करता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को पाता है।

Bhagavad Gita Quotes in Hindi

(13)

जब मनुष्य सत्त्वगुण की वृद्धि में मर जाता है, तो यह उत्तम कर्म करने वालों के निर्मल दिव्य स्वर्गादि लोकों को मिलता है।

(14)

ह्रदय को नियंत्रित नहीं करने वाले लोग शत्रु के समान होते हैं।

(15)

दान को सात्विक माना जाता है अगर यह एक कर्तव्य माना जाता है और बिना संकोच के किसी गरीब को दिया जाए।

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(16)

Bhagavad Gita में कहा गया है कि वासना, क्रोध और लालच नरक के तीन द्वार हैं।

(17)

हे अर्जुन! बहुत अधिक या कम भोजन करने वाले या बहुत कम सोने वाले व्यक्ति कभी भी योगी नहीं बन सकते।

(18)

वह जो मुझे हर जगह देखता है और मुझमें सब कुछ देता है, उसके लिए मैं कभी अदृश्य नहीं हूँ और वह भी मेरे लिए अदृश्य नहीं है।

Bhagavad Gita Quotes in Hindi

(19)

निश्छल बुद्धि वह है जो मन की सभी इच्छाओं को त्याग देता है और सिर्फ अपने आप में खुश रहता है।

(20)

विद्वान न तो जीवन और मृत्यु से दुखी होते हैं।

(21)

जीवन वर्तमान नहीं है, न अतीत।

(22)
खुद को जीवन के योग्य बनाना ही सफलता और सुख का एकमात्र मार्ग है।

(23)
हे अर्जुन! जो व्यक्ति सुख और दुख में विचलित नहीं होता और इन दोनों में समभाव रहता है, वह निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य है।

(24)
जैसे आदमी अपने पुराने कपड़े छोड़कर नए कपड़े पहनता है, आत्मा भी अपने व्यर्थ और पुराने शरीर छोड़ देती है।

(25)
हम दोनों कई बार पैदा हुए हैं, अर्जुन। तुम्हारे जन्मों को मैं नहीं याद कर सकता।

Bhagavad Gita Quotes in Hindi

(26)

वास्तव में, जो व्यक्ति कर्म को फल के लिए करता है, उसे न तो फल मिलता है, न ही वह कर्म है।

(27)

कर्म करो, फल की चिंता न करो।

(28)
जो मनुष्य कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है, वह सभी मनुष्यों में बुद्धिमान है और सभी प्रकार के कर्मों में प्रवृत्त होकर भी दिव्य स्थिति में रहता है।

(29)
गुरु दीक्षा के बिना कोई भी प्राणी कार्य सफल नहीं होता।

(30)

प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों का पालन करके सिद्ध हो सकता है।

(31)
हे अर्जुन! जो बुद्धि धर्म और अधर्म में भेद नहीं कर सकती, वह राजा के योग्य है।

(32)

मनुष्य जो चाहे बन सकता है, अगर वह अपने लक्ष्य पर लगातार ध्यान देता है तो।

(33)

जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, जो होगा वो भी अच्छा ही होगा। 

Bhagavad Gita Quotes in Hindi

(34)

जिसने मन को जीत लिया है उसके लिए मन सबसे अच्छा मित्र है, लेकिन जो ऐसा नहीं कर पाया उसके लिए मन सबसे बड़ा दुश्मन बना रहेगा। 

(35)

निर्बलता अवश्य ईश्वर देता है किन्तु मर्यादा मनुष्य का मन ही निर्मित करता है। 

(36)

हे कुन्तीपुत्र! मैं जल का स्वाद हूँ, सूर्य तथा चन्द्रमा का प्रकाश हूँ, वैदिक मन्त्रों में ओंकार हूँ, आकाश में ध्वनि हूँ तथा मनुष्य में सामर्थ्य हूँ। 

(37)

जो सब प्राणियों के दुख-सुख को अपने दुख-सुख के समान समझता है और सबको समभाव से देखता है, वही श्रेष्ठ योगी है। 

(38)

हे अर्जुन! मैं ही गर्मी प्रदान करता हूँ और बारिश को लाता और रोकता हूँ। मैं अमर हूँ और साक्षात् मृत्यु भी हूँ। आत्मा तथा पदार्थ दोनों मुझ ही में हैं।

(39)

जो साधक इस मनुष्य शरीर में, शरीर का नाश होने से पहले-पहले ही काम-क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वही पुरुष योगी है और वही सुखी है।

(40)

हे योगेश्वर! मैं किस प्रकार निरंतर चिंतन करता हुआ आपको जानूँ और हे भगवन्‌! आप किन-किन भावों में मेरे द्वारा चिंतन करने योग्य हैं?

(41)

 मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा संपूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूँ।

(42)

यकीन है कि कोई भी मनुष्य कभी भी बिना काम किए नहीं रहता क्योंकि सभी मनुष्यों को प्रकृति के गुणों द्वारा परवश हुआ काम करना पड़ता है।

उम्मीद करता हूँ की आपको यह पोस्ट पसंद आया होगा अगर आपको इसके बारे में समझने में कोई दिक्कत हो या कोई सवाल है तो कमेंट बॉक्स में पूछ सकते है हम आपके प्रश्न का उत्तर जरूर देंगे।

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मै निशांत सिंह राजपूत इस ब्लॉग का फ़ाउंडर हूँ। मुझे अलग-अलग चीजों के बारे में लिखना और उन्हें आप तक पहुँचाने में रूचि है, मै करीब 3 वर्ष से अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहा हूँ। मेरे द्वारा लिखा गया कंटेंट आपको कैसा लगा, कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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