Bhagat Singh Biography in Hindi | शहीद भगत सिंह का जीवन परिचय

Bhagat Singh Biography in Hindi

Bhagat Singh Biography in Hindi : दोस्तों आज का हमारा आटिकल देश भक्ति पर होने वाला है जिसे आपको जरुर पढना चाहिए इस पोस्ट में महान क्रन्तिकारी और स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की जीवनी के बारे में जिसे हमने बहुत सरल शब्दों में बताने जा रहे है जैसा कि आपको मालूम होगा भगत सिंह भारत का एक महान क्रन्तिकारी और स्वतंत्रता सेनानी थे।

इन्होंने चन्द्रशेखर आजाद और पाटी के अन्य के सदस्यो के साथ मिलकर इन्होने देश की आजादी के अभूत पूर्व साहस के साथ शक्तिशाली अंग्रेजी सरकार का मुकाबला किया था इन्होने पहले लाहौर में सेंडर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली के केंद्रीय संसद यानि सेंट्रल असेम्बली में बम विस्पोट करके ब्रिटिश साम्राज्य में खुले बिद्रोह की चेतावनी दी थी।

इन्होने असेम्बली में बम फेककर भागने की कोशिश भी नहीं की जिसके बाद इन्हें 23 मार्च 1931 को इनके दो अन्य साथियों राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फांसी पर चढ़ा दिया गया उनके इस बलिदान के बाद पुरे भारत देश में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आक्रोस की लहर दौड़ गयी थी और देश को आजाद कराने में लोग एक साथ सहियोग दिया।

आज के आर्टिकल में हम इन्ही वीर योद्धाओ के वीरता को देश के आजादी के बारे में कुछ सच्ची घटना जानने को मिलेगा जिसमे भगत सिंह की जीवनी (Bhagat Singh Biography in Hindi) के बारे में आइये विस्तार से जानते है। 

Bhagat Singh Biography in Hindi

जीवन परिचयभगत सिंह जीवन परिचय
पूरा नामशहीद भगत सिंह
जन्म27 सितम्बर 1907
जन्म स्थानजरंवाला तहसील, पंजाब
माता का नाम विद्यावती
पिता का नाम सरदार किशन सिंह सिन्धु
भाई – बहनरणवीर, कुलतार, राजिंदर, कुलबीर, जगत, प्रकाश कौर, अमर कौर, शकुंतला कौर
मृत्यु का दिनांक23 मार्च 1931
मृत्यु का स्थानलाहौर, पंजाब

शहीद भगत सिंह का जीवन परिचय

भगत सिंह भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे इसका पूरा नाम भगत सिंह संधू था इसकी जन्म 28 सितम्बर 1907 को माना जाता है परन्तु अन्य तथ्यों के अनुसार इनका जन्म 19 अक्टूबर 1907 को हुआ था भगत सिंह कब पिता का नाम सरदार किशन सिंह संधू और माता का नाम विद्यावती कौर था यह एक जाट परिवार से तलूक रखते थे।

अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जालियावाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के सोच पर बहुत गहरा प्रभाव डाला था लाहौर के रास्ट्रीय पढाई को छोड़कर भगत सिंह ने भारत के आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की काकोरी कांड में रामप्रसाद विस्मिल सहित चार क्रांतिकारियों को फांसी और 16 अन्य को कारावास के सजा हुए।

जिससे भगत सिंह इतने क्रोधित हुए की चंद्रशेखर आजाद के साथ भी उनकी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए और उसे एक नया नाम दिया हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन इस संगठन का उदेश्य सेवा त्याग और पीड़ा झेल सकने वाला नव युवाओ को देश के आजादी के लिए तैयार करना था।

भगत सिंह ने राज गुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक को जीपी सेंदर्स को मारा था इस करवाई में क्रन्तिकारी चंद्रशेखर आजाद ने उनकी पूरी सहायता की थी।

क्रन्तिकारी साथी बटुकेस्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह में वर्तमान नयी दिल्ली ब्रिटिश भारत के तत्कालीन सेन्ट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेके थे बम फेकने के बाद वही पर दोनों ने अपने आप को गिरफ़्तार भी करवा लिया।

भगत सिंह का बचपन

यह बात उस समय भगत सिंह लगभग 12 साल के थे जब जलिया वाला बाग हत्याकांड हुआ था इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने विद्यालय से 12 मील पैदल चलकर जलिया वाला बाग पहुचे थे इस उम्र में भगत सिंह अपने चाचाओ के क्रांतिकारी किताबो को पढ़कर सोचते थे।

इनका रास्ता सही है या नहीं गांधीजी का असहियोग आंदोलन छोड़ने के बाद गांधीजी के अहिसात्मक तरीको और क्रांतिकारियों के हिंसक आन्दोलन में से अपने लिए रास्ता चुनने लगे गांधीजी का असहियोग आन्दोलन को रद्द करने के कारण उनमे थोड़ा गुस्सा हुआ लेकिन वह भी पुरे देश के तरह वो भी महात्मा गांघी का सम्मान करते थे।

परन्तु उन्होंने गाँधीजी की तरह अहिसात्मक आन्दोलन की तरह देश की आजादी के लिए हिंसात्मक आन्दोलन का मार्ग अपनाना सही नहीं समझा उन्होंने जुलूसो में भाग लेना प्रारंभ किया तथा कई क्रन्तिकारी दलो का सदस्य बने उनके दल के प्रमुख क्रान्तिकारियो में चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव और राजगुरु इत्यादी थे।

भगत सिंह असेम्बली में बम क्यों फेका

भगत सिंह को पूंजीपतियों को मजदूरो के प्रति सोषण की निति पसंद नहीं थी उस समय बहुत कम भारती उद्योगपति उन्नति कर पाए थे इसलिए मजदूरो के प्रति अंग्रजो का अत्याचार से उनका विरोध जरुरी था मजदुर विरोधी ऐसी नितिओ को ब्रिटिश संसद में पारित न होने देना उनका दल का निर्णय था।

सभी चाहते थे की अंग्रजो को पता चलना चलिए की हिन्दुस्तानी अब जाग चुके है और उनके ह्रदय में ऐसी नीतियों के प्रति आक्रोस है ऐसा करने के लिए ही उन्होंने दिल्ली के केंद्रीय असेम्बली में बम फेकने की योजना बनाई थी भगत सिंह चाहते थे की इसमें कोई खून-खराबा न हो और अंगेजो तक उनकी आवाज भी पहुंचे। 

हालांकि शुरू में उनके दल के सभी लोग ऐसा नहीं सोचते थे पर अंत में सबकी सहमती से भगत सिंह और बटुकेस्वर दत्त का नाम चुना गया निर्धारित कार्य-क्रम के अनुसार 8 अप्रैल 1929 को केन्द्रीय असेम्बली में इनदोनो ने ऐसे स्थान पर बम फेका जहां कोई मौजूद नहीं था।

इनकी मन में किसी को चोट पहुचने की नहीं थी बम फेकने के बाद पूरा हौल धुँआ से भर गया भगत सिंह चाहते हो भाग भी सकते थे पर उन्होंने पहले ही सोच रखा था की उनको दंड स्वीकार करना है चाहे वो फाँसी क्यों न हो।

इसीलिए उन्होंने भागने से माना कर दिया बम फटने के बाद उन्होंने इन क्लब जिन्दाबाद और साम्राज्य बाद मुर्दाबाद का नारा लगने लगे और अपने साथ लाये हुए पर्चे इसके कुछ देर बाद पुलिस आ गयी और दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया।

भगत सिंह का जेल का सफ़र

जेल में भगत सिंह लगभग 2 साल रहे इस दौरान लेख लिखकर क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहते थे जेल में रहते हुए भी उनका ध्यान लगतार जारी रहा उस समय लिखे गए लेख और उनके संगे-संबंधी के द्वारा लिखे गए पत्र आ भी उनके विचर के दर्पण है अपने लेखो में कोई प्रकार के पूंजीवादियो को अपना दुशमन बताया था।

उन्होंने लिखा की मजदूरो का सोसण करने वाला चाहे वो भारतीय क्यों न हो वो उनका दुश्मन है उन्होंने जेल में अंग्रेजी में एक लेख भी लिखा था जिसका शीर्षक था मै नास्तिक क्यों हूँ जेल में भगत सिंह और उनके साथियों ने 64 दिनों के लिए भूख हड़ताल भी की थी उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपना जान गवा दिए थे।

भगत सिंह की फाँसी 

26 अगस्त 1930 का दिन हमें कभी भी नहीं भुलाना चलिए क्योकि इसी दिन अदालत ने भारतीय दंड सहिता 129, 302 तथा विस्पोतक पदार्थ अधिनियम का धारा 4 और 6 ऍफ़ तथा आई.पी.सी का धारा 120 के अंतर्गत उनको अपराधी घोषित किया 7 अक्टूबर 1930 को अदालत के द्वारा 68 पन्नो का निर्णय दिया गया।

जिसमे भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फाँसी की सजा सुनाई गयी फाँसी की सजा सुनाई जाने के बाद लाहौर में धारा 144 लगा दी गयी इसके बाद भगत सिंह के फाँसी के माफ़ी के लिए पीबी परिसर में अपील जारी की गई परन्तु यह अपील 10 जनवरी 1931 को रद्द कर दी गई।

इसके बात तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पंडित मदन मोहन मालवीय के वायसराय के सामने सजा माफी के लिए 14 फ़रवरी 1931 को अपील दायर की वो अपने विशेस अधिकार का प्रयोग करते हुए मानवता के आधार पर फाँसी की सजा माफ़ कर दे।

भगत सिंह की फाँसी की सजा माफ़ करवाने के लिए महात्मा गाँधी ने 17 फ़रवरी 1931 को वायसराय से भी बात की 18 फ़रवरी 1931 को आम जनता की योर से भी वायसराय के सामने अलग-अलग विचार से सजा माफ़ी के लिए अपील दायर की गई थी आपको यह बता दे की यह सबकुछ भगत सिंह के इक्छा के खिलाफ हो रहा था।

क्योकि भगत सिंह नहीं चाहते थे की उनकी सजा माफ़ कर दी जाए और लोग उनके लिए अंग्रजो के सामने निवेदन करे 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव और राजगुरु को फाँसी दे दी गयी फाँसी पर जाने से पहले वे लैनेल की जीवनी पढ़ रहे थे।

और जब उनसे उनकी आखरी इक्छा पूछी गयी तो उन्होंने कहा की जो वो किताब पढ़ रहे थे वो पूरा पढने दिया जाए कहा जाता है की जब जेल के अधिकारियो ने उन्हें सूचना दी की उनकी फाँसी का वक्त आ गया है तब उन्होंने कहा था।

ठहरिये पहले एक क्रन्तिकारी दुसरे क्रन्तिकारी से मिल तो ले फिर 1 मिनट बाद किताब छत की योर उछाकर बोले ठीक है अब चलो फाँसी पर जाते समय वे तीनो मस्ती से गा रहे थे।

भगत सिंह का गाना कौन-सा था

आइये जानते है वीर भगत सिंह कौन-सा गाना फाँसी के समय गा रहे थे।

                        मेरा रंग दे वसंती चोला,

                              मेरा रंग दे,

                   मेरा रंग दे वसंती चोला,

                    माय रंग दे बसंती चोला!!

इसके बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव हमेशा के लिये अमर हो गए भगत सिंह को फाँसी दिये जाने के बाद बहुत से लोग अंग्रेजो के साथ-साथ महात्मा गाँधी को भी इनकी मौत का भी जिम्मेदार मानने लगे।

इसी कारण जब महात्मा गाँधी कांग्रेस के लाहौर अधिवेसन में हिस्सा लेने जा रहे थे लोगो ने काले झंडे के साथ महात्मा गाँधी का स्वागत किया जेल के दिनों में उनके लिखे खतो और लेखो से उनके विचारो का अंदाजा लगता है।

उन्होंने अपने लेखो के मध्ध्यम से भारतीय समाज में जाती और धर्म के कारण आयी दूरियों पर दुख प्रकट की थी उन्होंने समाज के किसी कमजोर वर्ग पर किसी भारतीय का प्रहार को भी उसी शक्ति से सोचा जितना की किसी अंग्रेज द्वारा किया गया अत्याचार को भगत सिंह को हिंदी, उर्दू, पंजाबी तथा अंगेजी के अलावा बंगला भी आती थी।

जो उन्होंने बटुककेस्वर दत्त से सीखी थी उनका विस्वास था की उनकी सहादत से भारतीय जनता में आजादी की लड़ाई की ज्वालामुखी भड़क उठेगी ऐसा उनके जिन्दा होने से सायद ही हो पाए इसी कारण उनको मौत की सजा सुनने के बाद भी माफ़ी नामा लिखने से साफ़ माना कर दिया था फाँसी के पहले 3 मार्च को अपने भाई कुलदार को भेजे गए पत्र में भगत सिंह ने लिखा था

भगत सिंह पत्र में क्या लिखा था

भगत सिंह फाँसी के पहले अपने भाई कुलदार को जो पत्र भेजे थे उसमे कुछ इस तरह लिखा था

             उन्हें यह फिक्र है हरदम, नयी तर्ज-ए –जफा क्या है?

                      हमें यह शौक है देखे,सितम की इन्तहा क्या है?

                      दहर से क्या खफा रहे, चर्ख का क्या गिला करे

                        सारा जहा अदू सही, आओ! मुकाबला करे!!

इन जोशीली पक्तियों से उनके सौर का अनुमान लगाया जा सकता है चन्द्रशेखर आजाद से पहली मुलाकर में जलती हुए मुम्बती पर हाथ रखकर उन्होंने कसम खाई थी की उनकी जिन्दगी देश पर ही कुर्बान होगी और वो अपनी कसम पूरी कर भी दिखाई दोस्तों शहीद भगत सिंह की जीवनी यानि Bhagat Singh Biography in Hindi कुछ इस तरह का था।

लाला लाजपत राय का मौत का बदला – Lala Lajpat Rai Death

1928 में साइमन कमिसन के बहिस्कार के लिए भयानक प्रदर्सन हुए इन प्रदर्सनो में भाग लेने वालो पर अंग्रेजी सरकार ने लाठी चार्ज भी किया इन्ही आंदोलनों के दौरान लाला लाजपत राय अंग्रेजो के एक लाठी का शिकार हो गए और वो लाठी उनके सिर पर लगी थी चोट इतनी गहरी थी इसके कारण लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गयी।

इस घटना के बाद भगत सिंह इतने गुस्से में आ गए उनसे नहीं रहा गया एक गुप्त युजना के तहद पुलिस सुप्रितेंदंड स्कोर्ट को मरने की योगना बनाई सोची गयी योजना के अनुसार भगत सिंह और राज गुरु लाहौर कोतवाली के सामने व्यस्त मुद्रा में टहलने लगे उधार जाए गोपाल अपनी साइकल को लेकर ऐसे बैठ गया था।

जैसे की वो ख़राब हो गयी हो गोपाल के इशारे पर दोनों सचेत हो गये उधार चन्द्रशेखर आजाद पास के डी.ए.वी स्कूल में छिपकर घटना को अंजाम देने में एक रक्षक का कम कर रहे थे 17 दिसंबर 1928 को करीब सवा चार बजे पुलिस सुप्रितेंदंड को आते ही राज गुरु ने गोली उसके सिर में दे मारी जिसके थोड़ी देर बाद वो होस खो बैठा इसके बाद भगत सिंह ने 3 से 4 गोली मारकर उसके मरने का पूरा व्वस्था कर दिया।

ये दोनों जब भाग रहे थे तो एक सिपाही चनन सिंह इनका पीछा किया चन्द्रशेकर आजाद ने उस सिपाही को रोकते हुए उसे सावधान किया और बोले की आगे बढे तो गोली मार दूंगा पर वो सिपाही नहीं माना फिर चन्द्रशेखर आजाद ने उसे गोली मर दी और इस तरह इन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजो से लाला लाजपत राय के मौत का बदला ले लिया।

FAQ

Q : भगत सिंह का जन्म कहां हुआ?

Ans : भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907  लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था (जो अब पाकिस्तान में है) देश के बटवारा से पहले यह भारत में था।

Q : भगत सिंह ने किस स्कूल से बारहवीं की पढ़ाई पूरी की थी?

Ans : भगत सिंह की पढ़ाई लाहौर के डीएवी हाई स्कूल से हुई थी और उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर देश के आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी।

Q : भगत सिंह को आतंकवादी किसने कहा था?

Ans : मृदुला और विपिन चंद्रा की पुस्तक ‘इंडियाज स्ट्रगल फार इंडीपेंडेंस’ में भगत सिंह को ‘क्रांतिकारी आतंकवादी’ बताया था।

Q : 1923 में भगत सिंह ने किस कॉलेज में पढ़ाई की थी?

Ans : सन 1923 में भारत सिंह ने लाहौर के नेशनल कॉलेज से पढाई की थी।

Q : भगत सिंह के वंशज कौन है?

Ans : शहीद भगत सिंह के पोते यादवेन्द्र सिंह है जो ब्रिगेड के प्रेसिडेंट हैं यह एक संगठन है जो देशभर में भगत सिंह के विचारों का प्रचार-प्रसार करता है।

Q : भगत सिंह को फांसी देने वाले जज का नाम क्या था?

Ans : भगत सिंह को फांसी की सजा को 24 मार्च 1931 से 11 घंटे घटाकर 23 मार्च 1931 को शाम 7:30 बजे कर दिया अदालत में उनको फंसी की सजा सुनने वाले जज का नाम जी.सी. हिल्टन था।

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